अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार | कबीर के दोहे

अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार । जो तुम छोड़ो हाथ तौ, कौन उतारे पार ।। अर्थ: हे प्रभु ! आप हृदय के भावों को जानने वाले तथा आत्मा के…

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अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट | कबीर के दोहे

अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट । चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट ।। अर्थ: जैसे कि शरीर में वीर की भाल अटक जाती है और…

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प्रेम पर कबीर के दोहे | prem par kabir ke dohe

प्रेम पर कबीर के दोहे आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार नेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन ब्यबहार। अर्थ- अग्नि का ताप और तलवार की धार सहना आसान है…

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