अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट | कबीर के दोहे

अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट ।

चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट ।।

अर्थ: जैसे कि शरीर में वीर की भाल अटक जाती है और वह बिना चुंबक के नहीं निकल सकती इसी प्रकार तुम्हारे मन में जो खोट (बुराई) है वह किसी महात्मा के बिना निकल नहीं सकती, इसलिए तुम्हें सच्चे गुरु की आवश्यकता है ।

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