कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर (अर्थ)

कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर ।

ताही का बखतर बने, ताही की शमशेर ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि एक ही धातु लोहे को अनेक रूपों में गढ़कर अनेक वस्तुएं बना सकते हैं । जिस प्रकार तलवार तथा बखतर लोहे के ही बने होते हैं उसी प्रकार भगवान अनेको रूपों में प्राप्त है, परंतु वह एक ही है ।

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