कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय (अर्थ) कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय । खरी खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति में जौ कि भूसी खाकर रहना उत्तम है, परंतु दुष्ट की संगति में खांड़ मिश्रित खीर खाकर भी रहना अच्छा नहीं । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postकबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास (अर्थ) Next Postकबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि (अर्थ) You Might Also Like जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं (अर्थ) May 17, 2023 नहिं शीतल है, चंद्रमा, हिम नहिं शीतल होय (अर्थ) May 17, 2023 दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार (अर्थ) May 17, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.