कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास (अर्थ)

कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास ।

जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुवास ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति गंधी की वास की भाँति है, यद्द्पि गंधी प्रत्यक्ष में कुछ नहीं देता है तो भी उसके इत्रों की सुगंधी से मन को अत्यंत प्रसन्नता मिलती है । इसी प्रकार साधु संगति से प्रत्यक्ष लाभ न होता हो तो भी मन को अत्यंत प्रसन्नता और शांति तो मिलती है ।

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