कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह (अर्थ) कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ।। अर्थ: जिस तरह कुम्हार बहुत ध्यान व प्रेम से कच्चे बर्तन को बाहर से थपथपाता है और भीतर से सहारा देता है । इसी प्रकार गुरु को चेले का ध्यान रखना चाहिए । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postकेतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह (अर्थ) Next Postगर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव (अर्थ) You Might Also Like कबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि (अर्थ) April 30, 2023 कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय (अर्थ) May 1, 2023 चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय (अर्थ) May 1, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.