काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय (अर्थ) काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय । काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।। अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा है । शरीर के अंदर हृदय में भगवान स्वयं विराजमान है, इस बात को कोई बिरला ही जानता है । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postकाह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं (अर्थ) Next Postकहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय (अर्थ) You Might Also Like तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय (अर्थ) May 17, 2023 जल में बर्से कमोदनी, चन्दा बसै अकास (अर्थ) May 17, 2023 ज्यों नैनन में पूतली, त्यों मालिक घर मांहि (अर्थ) May 1, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.