काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय (अर्थ)

काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय ।

काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।।

अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा है । शरीर के अंदर हृदय में भगवान स्वयं विराजमान है, इस बात को कोई बिरला ही जानता है ।

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