कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार (अर्थ) कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार । साधु बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।। अर्थ: कठोर वचन सबसे बुरी वस्तु है, यह मनुष्य के शरीर को जलाकर राख के समान कर देता है । सज्जनों के वचन जल के समान शीतल होते हैं । जिनको सुनकर अमृत की वर्षा हो जाती है । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postकहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय (अर्थ) Next Postकहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय (अर्थ) You Might Also Like काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं (अर्थ) April 30, 2023 गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच (अर्थ) May 1, 2023 कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय (अर्थ) April 30, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.