चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय (अर्थ)

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।

दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय ।।

अर्थ: चलती हुई चक्की को देखकर कबीर रोने लगे कि दोनों पाटों के बीच में आकर कोई भी दाना साबुत नहीं बचा अर्थात इस संसार रूपी चक्की से निकलकर कोई भी प्राणी अभी तक निष्कलंक (पापरहित) नहीं गया है ।

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