जहर की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार (अर्थ)

जहर की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार ।

कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ।।

अर्थ: हे कबीर! संसार में जिसने जो कुछ सोच-विचार रखा है वह ऐसे नहीं छोड़ता उसने जो पहले ही अपनी धरती में विष देकर थाँवला बनाया है अब सागर अमृत सींचता है तो क्या लाभ ?

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