जहर की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार (अर्थ) जहर की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार । कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ।। अर्थ: हे कबीर! संसार में जिसने जो कुछ सोच-विचार रखा है वह ऐसे नहीं छोड़ता उसने जो पहले ही अपनी धरती में विष देकर थाँवला बनाया है अब सागर अमृत सींचता है तो क्या लाभ ? Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postजल में बर्से कमोदनी, चन्दा बसै अकास (अर्थ) Next Postजहाँ ग्राहक तंह मैं नहीं, जंह मैं गाहक नाय (अर्थ) You Might Also Like कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय (अर्थ) May 1, 2023 जाके जिभ्या बन्धन नहीं हृदय में नाहिं साँच (अर्थ) May 17, 2023 आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर (अर्थ) April 21, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.