जाके जिभ्या बन्धन नहीं हृदय में नाहिं साँच (अर्थ) जाके जिभ्या बन्धन नहीं हृदय में नाहिं साँच । वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ।। अर्थ: जिसको अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं और मन में सच्चाई नहीं तो ऐसे मनुष्य के साथ रहकर तुझे कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postजहाँ ग्राहक तंह मैं नहीं, जंह मैं गाहक नाय (अर्थ) Next Postजग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय (अर्थ) You Might Also Like तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर (अर्थ) May 17, 2023 नहिं शीतल है, चंद्रमा, हिम नहिं शीतल होय (अर्थ) May 17, 2023 अनुभव के ऊपर कबीर के दोहे – kabir ke dohe May 27, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.