जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप (अर्थ) जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप । पुछुप बास तें पामरा, ऐसा तत्व अनूप ।। अर्थ: निराकार ब्रह्म का कोई रूप नहीं है वह सर्वत्र व्यापक है न वह विशेष सुंदर ही है और न कुरूप ही है वह अनूठा तत्व पुष्प की गन्ध से पतला है । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postज्यों नैनन में पूतली, त्यों मालिक घर मांहि (अर्थ) Next Postजाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान (अर्थ) You Might Also Like जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय (अर्थ) May 1, 2023 कबीरा सोई पीर है, जो जा नै पर पीर (अर्थ) April 30, 2023 जा कारण जग ढूंढिया, सो तो घट ही माहिं (अर्थ) May 1, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.