जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख (अर्थ) जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख । अनुभव भाव न दरसे, वे नर दुःख ना सुख ।। अर्थ: जिस तरह सूखा पेड़ नहीं फलता इसी तरह राम के बिना कोई नहीं फल-फूल सकता । जिसके मन में रामनाम के सिवा दूसरा भाव नहीं है उनको सुख-दुख का बन्धन नहीं है । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postजो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार (अर्थ) Next Postतीरथ गए से एक फल, सन्त मिलै फल चार (अर्थ) You Might Also Like पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात (अर्थ) May 17, 2023 कबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि (अर्थ) April 30, 2023 आया था किस काम को, तू सोया चादर तान (अर्थ) April 21, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.