झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद (अर्थ)

झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद ।

जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ।।

अर्थ: झूठे सुख को सुख माना करते हैं तथा अपने में बड़े प्रसन्न होते हैं, वह नहीं जानते कि मृत्यु के मुख में पड़ कर आधे तो नष्ट हो गए और आधे हैं वह भी और नष्ट हो जाएंगे । भाव यह है कि कबीरदास जी कहते हैं कि मोहादिक सुख को सुख मत मान और मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवान का स्मरण कर । भगवत भजन में ही वास्तविक सुख है ।

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