पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात (अर्थ) पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन पानी के बुलबुले के समान है जो थोड़ी-सी देर में नष्ट हो जाता है, जिस प्रकार प्रातःकाल होने पर तारागण प्रकाश के कारण छिप जाते हैं । Tags: kabir das, kabir ke dohe, कबीर के दोहे Read more articles Previous Postपोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित हुआ न कोय (अर्थ) Next Postपाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार (अर्थ) You Might Also Like कबीरा संगत साधु की, निष्फल कभी न होय (अर्थ) April 30, 2023 पैसे के ऊपर कबीर के दोहे – kabir ke dohe May 27, 2023 छिन ही चढ़े छिन उतरे, सो तो प्रेम न होय (अर्थ) May 1, 2023 Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.